Top 14+ Poems on Rain in Hindi | बारिश पर कविताएँ
बारिश के बारे में आपकी पसंदीदा कविता कौन सी है? यह वह हो सकता है जो आपने लिखा है, या कुछ और किसी और के पास है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि मामला क्या हो सकता है, यह कहना सुरक्षित है कि बारिश कुछ बेहतरीन कविताएँ बना सकती है। आपको प्रेरित करने के लिए, हमने नीचे बारिश पर दस कविताओं की एक सूची संकलित की है!
Looking for the best Rain poems in Hindi? then here we the best collection of Hindi Rain Poems which are written by great Hindi Poets.
Best Poems on Rain In Hindi | बारिश पर कविताएँ
We have collected the 15 best Rain Poems in Hindi:वर्षा ऋतु पर कविताएँ which are really interesting to read. So Enjoy बारिश पर कविताएँ.
- एक बारिश में उसके साथ भीगने का मन | प्रेमरंजन अनिमेष
- मौसम की पहली बारिश | देवमणि पांडेय
- बारिश आने से पहले | गुलज़ार | Rain Poems in Hindi
- खूबसूरत बारिश | असंगघोष
- बारिश की बूँदें | ओएनवी कुरुप
- बारिश | पूनम सिंह
- नींद में बारिश | तुषार धवल | Hindi Poem on Rainy Season
- बारिश : चार प्रेम कविताएँ | स्वप्निल श्रीवास्तव | Hindi Poems on Rain by Famous Poets
- बारिश | मंगलेश डबराल | Funny Poem on Rain in Hindi
- बारिश का मौसम | दीनदयाल शर्मा
- नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गये होते | मुनव्वर राना
- फुहारों वाली बारिश | नागार्जुन
- बारिश के मौसम के हैं कई रूप | रमेश तैलंग
- बारिश में करुणानिधान | सू शि
1.एक बारिश में उसके साथ भीगने का मन | प्रेमरंजन अनिमेष
एक बारिश में उसके साथ भीगने का मन
उसकी बातों में कोई रात जागने का मनउसके बालों को आगे ला के उसके कन्धों पर
अपने हाथों से हर धड़कन सहेजने का मनमहके फूलों को यूँ बिखरा के देह भर उसकी
अपने होंठों उसे हर फूल देखने का मनहूँ मुहब्बत वहाँ जाऊँ जहाँ न जाए कोई
सिहरे तन में कहीं है मन को चूमने का मनकबसे धरती को तकती हो गई है ख़ुद धरती
अब उठा कर उसे आकाश सौंपने का मनपाँव रस्ते तो सारे नापते अकेले ही
थक के होता किसी के साथ लौटने का मनकिसी रिश्ते किसी नाते मिले कहाँ चाहत
प्यार रहकर ही कुछ उससे है माँगने का मनअपने सोचे हुए कुछ नाम उसको देने का
नाम हर भूल कर उसको ही सोचने का मनइसी मिट्टी में दब कर बीज सा उगूँ फिर से
इसी पानी में है सूरज सा डूबने का मनजि़न्दगी साथ दे और साथी वो जिसे ‘अनिमेष’
अपना सब कुछ हो अपने आप सौंपने का मन

2.मौसम की पहली बारिश | देवमणि पांडेय
छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिशजब तेरा आंचल लहराया
सारी दुनिया चहक उठी
बूंदों की सरगोशी तो
सोंधी मिट्टी महक उठीमस्ती बनकर दिल में छाई मौसम की पहली बारिश
रौनक़ तुझसे बाज़ारों में
चहल पहल है गलियों में
फूलों में मुस्कान है तुझसे
और तबस्सुम कलियों मेंझूम रही तुझसे पुरवाई मौसम की पहली बारिश
पेड़-परिन्दें, सड़कें, राही
गर्मी से बेहाल थे कल
सबके ऊपर मेहरबान हैं
आज घटाएं और बादलराहत की बौछारें लाई मौसम की पहली बारिश
आंगन के पानी में मिलकर
बच्चे नाव चलाते हैं
छत से पानी टपक रहा है
फिर भी सब मुस्काते हैंहरी भरी सौग़ातें लाई मौसम की पहली बारिश
सरक गया जब रात का घूंघट
चांद अचानक मुस्काया
उस पल हमदम तेरा चेहरा
याद बहुत हमको आयाकसक उठी बनकर तनहाई मौसम की पहली बारिश
3.बारिश आने से पहले | गुलज़ार | Rain Poems in Hindi
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है
सारी दरारें बन्द कर ली हैं
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है
खिड़की जो खुलती है बाहर
उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है
मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता
बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं !
यहीं कहीं कुछ गड़हों में
बारिश आती है तो पानी भर जाता है
जूते पाँव, पाँएचे सब सन जाते हैंगले न पड़ जाए सतरंगी
भीग न जाएँ बादल से
सावन से बच कर जीते हैं
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है !!

4.खूबसूरत बारिश | असंगघोष
बारिश कभी-कभार
होती है
खूबसूरत
रोज-रोज नहीं होती
याद रहती है वो
जो होती है
कभी-कभारजिसमें आँखें बंद किए
भीगे हों प्यार से
पानी की बूंदे उतरी हों
सर से रेला बन
आहिस्ता-आहिस्ता
चेहरे पर, और
उतर गई हों
तन को
तर-बतर करती हुईं
उन बूँदों से
हुए हो कभी आलिंगनबद्ध
छलकते हुए जाम की तरह
भुजाओं से छलका हो प्यार
वही तो है खूबसूरत बारिशऔर,
ऐसा रोज-रोज
हर बारिश में नहीं होता
इसलिए तो खूबसूरत बारिश
बार-बार नहीं होतीऔर,
जो बारिश होती है
खूबसूरत
वो हमेशा याद रहती है।
5.बारिश की बूँदें | ओएनवी कुरुप
गर्मियों से मुग्ध थी धरती
पर बारिश की बून्दें पड़ते ही
तुम बुदबुदाईं —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !क्या तुम्हारा मन
मिट्टी से भी ज़्यादा ठण्ड को महसूस करता है
तभी तो बारिश में विलीन हो गए
छलकते हुए आनन्द को स्वीकार न कर
तुमने आहिस्ता से कहा —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !तुम्हारे आँगन में
बून्द-बून्द में
अपने अनगिनत चान्दी के तारों में
सँगीत की सृष्टि कर
बारिश
जिप्सी लड़की की तरह नाचती है
तुम्हारी आँखों में ख़ुशी है, आह्लाद है
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों
से अनजान
तुम यहाँ बैठी हो
नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िन्दा हैअपनी सहेलियों के सँग
धीरे से घाघरा उठाकर
तुम नदी पार करती हो
अचानक बारिश गिरती है
लहरें चान्दी के नुपूर पहन नाचती हैंबारिश में भीगकर हर्षोन्माद में
हंसते हुए तुम
नदी तट पर पहुँचती होबारिश में भीगे आँवले के फूल
पगडण्डी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं
तुम्हारे सामने
केवल बारिश है, पगडण्डी है
और फूलों से भरे खेत हैं !मेरी उपस्थिति को भूलते हुए
तुमने मृदुल आवाज़ में कहा —
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !फिर तुम्हें देखकर
मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा —
तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो !
मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स
6.बारिश | पूनम सिंह
इस रेत समय में
जब झरे पीत पत्तों से
मेरे मन का आँगन पटा है
तुम ‘बारिश’ पर कविता लिखने को कह रहे हो
तुम्हें कैसे बताऊँ कि
पत्थर समय में
हरी गंध पर कविता लिखना
कितना कठिन है मेरे लिएसच कहो-अब कब आते हैं
विरही यक्ष का प्रणय निवेदन लेकर
अषाढ़ के बादल?
कहाँ उठती है धरती की कोख से
पहली बौछार की वह सोंधी गंध?
कब लगते हैं अमराइयों में
सावन के झूले?
उल्लास का पावस
कहाँ बरसता है अछोधार
किस रेत किस खेत में?
मन के किस आँगन किस कानन में?
बताओ ना मुझे मेरे मीतआज बारिश होती है
तो धरती की देह से फूटती है
बारूदी गंध
लाल धार बन बहने लगता है पानी
आग की लपटों
मौत की चीखों के बीच
बादलों की जल तरंग सी हँसी
मैं कैसे सुनूँ?
कैसे लिखूँ इस मरनासन्न बेला में
बारिश पर कविता
तुम्ही बोलोयाद करती हूँ बहुत उन दिनों को
जब भटकी हवाओं के साथ
कोरस गाते झूमते मंडराते
आते थे अषाढ़ के बादल
झमाझम बरसने लगता था पानीबादलों की झुनझुने सी हँसी सुन
हा! किस तरह
पुलक से भर
आँगन के ओरियाने
कागज की नाव तैराने
नंगे पाँव दौड़ जाते थे हम
अपनी डोगियो में
उल्लास की रंग बिरंगी मछलियाँ पकड़
तब कितने खुश होते थे हमआज घोषणाओं की बारिश में
जब तैरती है असंख्य कागज की नावें
और निरंतर बढ़ता जाता है
पानी का शोर
मैं बचपन की उस नाव को
कोशी की धार में
हिचखोले खाती देख रही हूँ
मेरा बचपन विस्थापित हो रहा है मेरे भाई
मैं ‘बारिश’ पर कविता लिखूँ
तो क्या लिखूँ-बोलोदेखो! उत्सव की तरह कैसे
मेगा शिविर में हो रही है
राहतों की बारिश
सुर्खियों में आने के लिए
किये जा रहे हैं कई जतन
सार्वजनिक झूठ के बीच
कितनी धूम से निकल रहा है
सच का जनाजा
राहतों की इस बरसात में
सूखे होठों की प्यास किस कदर बढ़ गई है
इस प्यास के आगे
कैसे लिखूँ मैं पावस की जलधार
तुम ही कहोनिष्क्रिय उत्तेजना से भरा यह
कैसा कठिन संत्रास का समय है
आकाश में मंडरा रही हैं चीलें
देश की सरहद को घेरते
हर दिशा से उठ रहे हैं काले मेघ
क्या इस सदी की यह
सबसे भीषण बरसात होगी?आशंकाओं से घिरा व्याकुल मन लिए
मैं सोच रही हूँ
उस प्रलयंकारी जल प्रपात में
क्या ‘बारिश’ पर लिखीं कविताएं
मनु की नाव बन
हर घर तक जायेंगी
सबको पार उतारेंगी
बताओ न मेरे मीत!
7.नींद में बारिश | तुषार धवल | Hindi Poem on Rainy Season
नींद में
सबके सो जाने पर
होती है बारिश
अकेले ही भीगते हैं
नदी नाव और टापू
रात की खोह में
दलदल है
इत्र का
बारिश के झिरमिर सन्नाटे में
जो एकदम से महक उठता है
शिरीष खिलता है
उनींदी बारिशों में
भीग कर आयी हवाएँ
घुस आती हैं
कोरे लिहाफ़ के भीतर
चौंक कर ताकता है
गरदन उठाए
एक बगूला
किसी गली से झाँकता है चोरइच्छाएँ
पैदा करके मुझे
मेरा ही
शिकार करती हैं।गाथाएँ अन्तर्दहन की
चुपचाप भीगती हैं
गीले-गीले ही
जल रहे हैं पत्तेभीगी हुई
रात के पिछवाड़े में
जले पत्ते
आग की कहानी कहते हैं
8.बारिश : चार प्रेम कविताएँ | स्वप्निल श्रीवास्तव | Hindi Poems on Rain by Famous Poets
बारिश हो रही है
तुम बार-बार देखती हो आकाश
चमकती हुई बिजली को देखकर
चिहुंक उठती होजितने भूरे-भूरे काले-काले
बादल हैं आकाश में
ये समुन्दर का पानी पीकर
धरती के ऊपर हाथी की सूंड़
की तरह झुके हुए हैंख़ूब बारिश हो रही है
तुम्हें बारिश अच्छी लगती
है न प्रियेवे तुम्हारे अच्छे दिन होते हैं
जब बारिश होती है
तुम्हें कालेज नहीं जाना पड़तातुम अपने खाली फ्रेम पर
काढ़ती हो स्वप्न
अनगिनत कल्पनाओं में
खो जाती होकितना कठिन आकाश है
तुम्हारे ऊपर
जिसमें जगमगा रहे हैं तारे
तुम्हारे हाथ इतने लम्बे नहीं
कि तुम उन्हें तोड़ सकोकुछ उमड़ते हुए बादल
मैंने तुम्हारी आँखों में
देखे हैं
जिस दिन वे बरसेंगे
सारी दुनिया भीग जाएगी

9.बारिश | मंगलेश डबराल | Funny Poem on Rain in Hindi
खिड़की से अचानक बारिश आई
एक तेज़ बौछार ने मुझे बीच नींद से जगाया
दरवाज़े खटखटाए ख़ाली बर्तनों को बजाया
उसके फुर्तील्रे क़दम पूरे घर में फैल गए
वह काँपते हुए घर की नींव में धँसना चाहती थी
पुरानी तस्वीरों टूटे हुए छातों और बक्सों के भीतर
पहुँचना चाहती थी तहाए हुए कपड़ों को
बिखराना चाहती थी वह मेरे बचपन में बरसना
चाहती थी मुझे तरबतर करना चाहती थी
स्कूल जानेवाले रास्ते परबारिश में एक एक कर चेहरे भीगते थे
जो हमउम्र थे पता नहीं कहाँ तितरबितर हो गए थे
उनके नाम किसी और बारिश में पुँछ गए थे
भीगती हुई एक स्त्री आई जिसका चेहरा
बारिश की तरह था जिसके केशों में बारिश
छिपी होती थी जो फ़िर एक नदी बनकर
चली जाती थी इसी बारिश में एक दिन
मैं दूर तक भीगता हुआ गया इसी में कहीं लापता
हुआ भूल गया जो कुछ याद रखना था
इसी बारिश में कहीं रास्ता नहीं दिखाई दिया
इसी में बूढ़ा हुआ जीवन समाप्त होता हुआ दिखाएक रात मैं घर लौटा जब बारिश थी पिता
इंतज़ार करते थे माँ व्याकुल थी बहनें दूर से एक साथ
दौड़ी चली आई थीं बारिश में हम सिमटकर
पास-पास बैठ गए हमने पुरानी तस्वीरें देखीं
जिन पर कालिख लगी थी शीशे टूटे थे बारिश
बार बार उन चेहरों को बहाकर ले जाती थी
बारिश में हमारी जर्जरता अलग तरह की थी
पिता की बीमारी और माँ की झुर्रियाँ भी अनोखी थीं
हमने पुराने कमरों में झाँककर देखा दीवारें
साफ़ कीं जहाँ छत टपकती थी उसके नीचे बर्तन
रखे हमने धीमे धीमे बात की बारिश
हमारे हँसने और रोने को दबा देती थी
इतने घने बादलों के नीचे हम बार बार
प्रसन्न्ता के किसी किनारे तक जाकर लौट आते थे
बारिश की बूँदें आकर लालटेन का काँच
चिटकाती थीं माँ बीच बीच में उठकर देखती थी
कहीं हम भीग तो नहीं रहे बारिश में ।
10.बारिश का मौसम | दीनदयाल शर्मा
बारिश का मौसम है आया ।
हम बच्चों के मन को भाया ।।‘छु’ हो गई गरमी सारी ।
मारें हम मिलकर किलकारी ।।काग़ज़ की हम नाव चलाएँ ।
छप-छप नाचें और नचाएँ ।।मज़ा आ गया तगड़ा भारी ।
आँखों में आ गई खुमारी ।।गरम पकौड़ी मिलकर खाएँ ।
चना चबीना खूब चबाएँ ।।गरम चाय की चुस्की प्यारी ।
मिट गई मन की ख़ुश्की सारी ।।बारिश का हम लुत्फ़ उठाएँ ।
सब मिलकर बच्चे बन जाएँ ।।
11.नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गये होते | मुनव्वर राना
नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते
ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते
तेरे दामन से सारी शहर को सैलाब से रोका
नहीं तो मैरे ये आँसू समन्दर हो गए होते
तुम्हें अहले सियासत ने कहीं का भी नहीं रक्खा
हमारे साथ रहते तो सुख़नवर हो गए होते
अगर आदाब कर लेते तो मसनद मिल गई होती
अगर लहजा बदल लेते गवर्नर हो गए होते
12.फुहारों वाली बारिश | नागार्जुन
जाने, किधर से
चुपचाप आकर
हाथी सामने लेट गए हैं,
जाने किधर से
चुपचाप आकर
हाथी सामने बैठ गए हैं !
पहाड़ों-जैसे
अति विशाल आयतनोंवाले
पाँच-सात हाथी
सामने–बिल्कुल निकट
जम गए हैं
इनका परिमण्डल
हमें बार-बार ललचाता रहेगा
छिड़ने-छेड़ने के लिए
सदैव बुलावा देता रहेगा !लो, ये गिरी-कुंजर
और भी विशाल होने लगे !
लो, ये दूर हट गए,
लो, ये और भी पास आ रहे,
लो, इनका लीलाधरी रूप
और भी फैलता जा रहा,
लेकिन, ये गुमसुम क्यों हैं ?
अरे, इन्होंने तो
ढक लिया अपने आपको
हल्की-पतली पारदर्शी चादरों से
झीने-झीने, ‘लूज’
झीनी-झीनी, लूज बिनावटवाली
वो मटमैली ओढ़नी
बादलों को ढक लेगी अब
अब फुहारोंवाली बारिश होगी
बड़ी-बड़ी बूँदें तो यह
शायद कल बरसेंगे…
शायद परसों…
शायद हफ़्ता बाद…
13.बारिश के मौसम के हैं कई रूप | रमेश तैलंग
पिछली गली में झमाझम पानी
अगली गली में है सुरमई धूप
बारिश के मौसम के हैं कई रूप।माई मेरी, देखो चमत्कार कैसा,
धोखाधड़ी का ये व्यापार कैसा,
किसना की मौसी की टोकरी में ओल,
बिसना की मोसी का सूखा है सूप।सुनता नहीं सबकी ये ऊपर वाला,
उसके भी घर में है गड़बड़ घोटाला
चुन्नू के घर में निकल गए छाते
मुन्नू के घर वाले रहे टाप-टूप।बारिश के मौसम के हैं कई रूप ।

14.बारिश में करुणानिधान | सू शि
रेशम के कीड़े
अब हैं तैयार
गेहूँ अधपीलापहाड़ पर
मूसलाधार बारिशकिसान
जोतते नहीं हैं खेत
न औरतें चुनतीं शहतूतश्वेत वेशभूषा में
शान से बैठे हैं
सभागार में
ऊँचाई पर
अमरावतार।
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