81+ Rahat Indori Shayari in Hindi
Looking for the best Rahat Indori Shayari in Hindi? Then here, we have collected the 81+ Rahatb Indori Shayari in Hindi On Live, Dosti, Maut and 2 Line Shayari.
Rahat Indori is famous Indian Shayar who wrote famous Bulati Hai Magar Jaane Ka Nahi shayari.
- Rahat indori shayari love
- Rahat indori Dosti shayari
- Rahat indori shayari Hindi 2 line
- Rahat indori shayari Hindi 4 line
- Rahat indori shayari Hindi Maut
- राहत इंदौरी मुशायरा लिरिक्स
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगेअब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
“बुलाती है मगर जाने का नहीं ,ये दुनिया है इधर जानेका नहीं मेरे बेटे
किसीसे इश्क़ कर मगर हदसे गुज़र जानेका नहीं”
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते
हैंरोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
मोहब्बत किससे और कब हो जाये अदांजा नहीं
होता ये वो घर है जिसका दरवाजा नहीं होता…!!
तुम्हारी दुनिया में हमारी चाहे कोई किमत ना हो मगर
हमने हमारी दुनिया में तुम्हे रानी का दर्जा दे रखा है…!!
Rahat indori shayari love

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,रोज़ शीशों से कोई काम निकल
सुनपगली तेरा दिल भी धड़केगा… तेरी आँख भी फड़केगी..
अपनी ऐसी आदत डालूँगा …के हर पल मुझसे मिलने के लिये तड़पेगी…!!
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है…!!
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है…!!
लवे दीयों की हवा में उछालते रहनागुलो के रंग पे तेजाब डालते रहनामें
नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगातुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी…

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।पड़ता है।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने परजो
मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
नए किरदार आते जा रहे
हैंमगर नाटक पुराना चल रहा है
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहेचले चलो की जहाँ तक ये
आसमान रहेये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिलमज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल
पड़ता हैचाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
Rahat indori Dosti shayari

अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था, मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
क्यों मदहोश करती है मुझे मौजूदगी तेरी ,
कहीं मुझे तुमसे प्यार तो नहीं हो गया ।
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ, ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया, ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ,
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है।
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए

अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते,जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते जाते।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी, मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी,
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता, यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी।
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी सेफूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी
सेबादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिएहमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से

अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ
देख कर उसको तेरा यूँ पलट जाना,…..
नफरत बता रही है तूने मोहब्बत गज़ब की थी।
ऐसा लगता है लहू में हमको, कलम को भी डुबाना चाहिए था
अब मेरे साथ रह के तंज़ ना कर, तुझे जाना था जाना चाहिए था
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
याद आयेगी हमारी तो बीते कल की किताब पलट लेना,
यूँ ही किसी पन्ने पर मुस्कराते हुए हम मिल जायेंगे।
खेलने दो उन्हे जब तक जी न भर जाए उनका,
मोहब्बत चार दिन कि थी तो शौक कितने दिन का होगा।
Rahat indori shayari Hindi 2 line

दो मुलाकात क्या हुई हमारी तुम्हारी,
निगरानी में सारा शहर लग गया।
अपने खिलाफ बाते खामोशी से सुन लो,
यकीन मानो वक्त बेहतरीन जवाब देगा।
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते,जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते जाते।
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते
आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर,
लोग लेते हैं मजा ज़िक्र तुम्हारा कर के।
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका
दियाइक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक
नाव लिएचारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं
उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी,मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी,
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी।
तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर,
जब भीग कर कहती है की अब रोया नहीं जाता।
तारे और इंसान में कोई फर्क नहीं होता,
दोनो ही किसी की ख़ुशी के लिऐ खुद को तोड़ लेते हैं।

Rahat indori shayari Hindi 4 line
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते
मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था
तुम तो दरिया थे मेरी प्यास बुझाते जाते
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का
बदन दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते,जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते जाते।
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था

तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके,दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके,
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी,तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
कुछ यूँ उतर गए हो मेरी रग-रग में तुम,
कि खुद से पहले एहसास तुम्हारा होता है।
मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर,मगर हद से गुजर जाने का नईं
वो गर्दन नापता है नाप ले,मगर जालिम से डर जाने का नईं
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन
ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
नहीं ‘मालूम ‘हसरत है या तू मेरी मोहब्बत है,
बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है।

Rahat indori shayari Hindi Maut
“ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो चले हो तो ठहर जाने का नहीं सितारे नोच कर ले
जाऊंगा मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं वबा फैली हुई है हर तरफ अभी
माहौल मर जाने का नहीं वो गर्दन नापता है नाप ले मगर जालिम से डर जाने का नहीं “
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो
आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर,
लोग लेते हैं मजा ज़िक्र तुम्हारा कर के
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे
ज़न्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राहत इंदौरी मुशायरा लिरिक्स

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके,दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके,
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी,तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
वो जो दो पल थे तुम्हारी और मेरी मुस्कान
के बीच बस वहीँ कहीं इश्क़ ने जगह बना ली…!
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
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