संत रविदास जी भारत के एक महानपुरुषो में से एक है| रविदास जी ने बहुत सारे दोहे लिखे है जिनसे वो अपने ज्ञान लोगो को बाँट ते थे | और हम सबको भी रविदास जी के दोहे पढ़ने चाहिए इसलिए हमने आज Ravidas Ke Dohe का संग्रह किया है |
संत रविदास जी के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है | ऐसा कहा जाता है की उनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन हुवा था | इनको लोग “” सतगुरु””, “”जगतगुरू”” आदि नामों से सत्कार करतहैं
तो चलिये देखते है संत रविदास के दोहे का संग्रह
class="wp-block-quote has-text-align-center">जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
रविदास के दोहे
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
“वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।”
“विष को प्याला राना जी मिलाय द्यो मेरथानी ने पाये।
कर चरणामित् पी गयी रे, गुण गोविन्द गाये।।”
“कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।”
“कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।”
“हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।”
चारि बेद जाकै सुमृत सासा,
भगति हेत गावै रैदासा।।
“गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी।
चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी।।”
Sant Ravidas ji ke Dohe in Hindi
“रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।”
“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।”
सिव सनिकादिक अंत न पाया,
खोजत ब्रह्मा जनम गवाया।।
तोडूं न पाती पूजौं न देवा,
सहज समाधि करौं हरि सेवा।।
नख प्रसेद जाकै सुरसुरी धारा,
रोमावली अठारह भारा।।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
चरन पताल सीस असमांना,
सो ठाकुर कैसैं संपटि समांना।
बांधू न बंधन छांऊं न छाया,
तुमहीं सेऊं निरंजन राया।।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
’रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।
Quotes of sant ravidas in hindi
माटी को पुतरा कैसे नचत है ।।
देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरत है ।।
जब कछु पावै तब गरब करत है ।।
माया गई तब रोवन लगत है ।।
मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ।।
बिनसि गया जाय कहुँ समाना ।।
कहि रविदास बाजी जग भाई ।।
बाजीगर सउ मोहे प्रीत बन आई ।।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
“हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।”
हम आशा करते है की आपको रविदास के दोहे पसंद आये होंगे | हम विनती कतरते है की Ravidas Dohe को आप अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे|
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Bahut hi badhiyaa dohe