15+Mahadevi Verma Poems in Hindi

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महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

Last Updated on August 8, 2023

महदेवी वर्मा छायावाद युग के कवी थी लेकिन आज भी लोग महादेव वर्मा जी के कविताये पढ़ना पसंद करते है इसलिए हम आज आपके लिए Mahadevi Verma Poems in Hindi लेकर आये है

महादेवी वर्मा छायावाद युग के हिंदी साहित्यकारों में से इ है | महदेवी वर्मा एक स्वतंत्रता सेनानी, कवी और एक महँ महिला थी | महादेवी वर्मा अपनी कविताओं के लिए बहुत सुप्रसिद्ध है | इनकी ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।

Mahadevi Verma Poems in Hindi

Here we have the best Mahadevi Verma Poems in Hindi

  1. अधिकार कविता | महादेवी वर्मा |
  2. जो तुम आ जाते एक बार कविता | महादेवी वर्मा |
  3. अश्रु यह पानी नहीं है कविता | महादेवी वर्मा |
  4. तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! कविता | महादेवी वर्मा
  5. विरह का जलजात जीवन कविता | महादेवी वर्मा |
  6. दीप मेरे जल अकम्पित कविता | महादेवी वर्मा |
  7. कौन तुम मेरे हृदय में? कविता |
  8. मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! कविता | महादेवी वर्मा
  9. मैं नीर भरी दुख की बदली! कविता | महादेवी वर्मा |
  10. बताता जा रे अभिमानी! कविता | महादेवी वर्मा
  11. ओ पागल संसार! | नीरजा कविता | महादेवी वर्मा
  12. दीपशिखा | प्राण हँस कर ले चला जब कविता | महादेवी वर्मा
  13. यह सपने सुकुमार कविता | महादेवी वर्मा

अधिकार कविता | महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma Poems in Hindi

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना;

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नहीं
जिसने देखी जाने की राह|

वे सूने से नयन,नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती;

ऐसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार!

अधिकार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
अधिकार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

जो तुम आ जाते एक बार कविता | महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma Short Poems

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
जो तुम आ जाते एक बार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

अश्रु यह पानी नहीं है कविता | महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma Poems

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
स्वाति को खोजा नहीं है औ’ न सीपी को पुकारा,
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा!
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

नमन सागर को नमन विषपान की उज्ज्वल कथा को
देव-दानव पर नहीं समझे कभी मानव प्रथा को,
कब कहा इसने कि इसका गरल कोई अन्य पी ले,
अन्य का विष माँग कहता हे स्वजन तू और जी ले।
यह स्वयं जलता रहा देने अथक आलोक सब को
मनुज की छवि देखने को मृत्यु क्या दर्पण नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

शंख कब फूँका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,
मौन जलता दीप, धरती ने कभी क्या दान तोले?
खो रहे उच्छ्‌वास भी कब मर्म गाथा खोलते हैं,
साँस के दो तार ये झंकार के बिन बोलते हैं,
पढ़ सभी पाए जिसे वह वर्ण-अक्षरहीन भाषा
प्राणदानी के लिए वाणी यहाँ बंधन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

किरण सुख की उतरती घिरतीं नहीं दुख की घटाएँ,
तिमिर लहराता न बिखरी इंद्रधनुषों की छटाएँ
समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,
निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,
वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है।
क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है?

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,
खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं,
साँस में आहट मिले तब आज पहचानूँ तुम्हें मैं,
वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूँ तुम्हें मैं!
आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो
अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है।

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! कविता | महादेवी वर्मा Mahadevi Verma Love Poems

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!

तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या?

तेरा मुख सहास अरूणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल-खेल, थक-थक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?

तेरा अधर विचुंबित प्याला
तेरी ही विस्मत मिश्रित हाला
तेरा ही मानस मधुशाला
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी
देते हो मधुमय विषमय क्या?

चित्रित तू मैं हूँ रेखा क्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू असीम मैं सीमा का भ्रम
काया-छाया में रहस्यमय
प्रेयसी प्रियतम का अभिनय क्या?

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

विरह का जलजात जीवन कविता | महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma Poems Hindi

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास;
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!
जीवन विरह का जलजात!

आँसुओं का कोष उर, दृगु अश्रु की टकसाल;
तरल जल-कण से बने घन सा क्षणिक् मृदु गात!
जीवन विरह का जलजात!

अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास!
अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात!
जीवन विरह का जलजात!

काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार;
पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात!
जीवन विरह का जलजात!

जो तुम्हारा हो सके लीलाकमल यह आज,
खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात!
जीवन विरह का जलजात!

विरह का जलजात जीवन_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
विरह का जलजात जीवन_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

दीप मेरे जल अकम्पित कविता | महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma Kavita

दीप मेरे जल अकम्पित,
घुल अचंचल!
सिन्धु का उच्छवास घन है,
तड़ित, तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल!
स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,
मीड़, सब भू की शिरायें,
गा रहे आंधी-प्रलय
तेरे लिये ही आज मंगल

मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल!

पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सबकी छाँह उज्ज्वल

हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल!

धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या!
प्रात हंस रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल!
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अंचल!

कौन तुम मेरे हृदय में? कविता | Mahadevi Verma Poems

कौन तुम मेरे हृदय में?

कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?

स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण निश्वास मेरे
कर रहे किसका निरन्तर
चूमने पदचिन्ह किसके
लौटते यह श्वास फिर फिर?

कौन बन्दी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करुण अभाव में चिर-
तृप्ति का संसार संचित;
एक लघु क्षण दे रहा
निर्वाण के वरदान शत शत;

पा लिया मैंने किसे इस
वेदना के मधुर क्रय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

गूँजता उर में न जाने
दूर के संगीत सा क्या!
आज खो निज को मुझे
खोया मिला, विपरीत सा क्या?

क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन मधु-दिन के उदय में
कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में
आलोक-प्रतिमा है अकम्पित
आज ज्वाला से बरसता
क्यों मधुर घनसार सुरभित?

सुन रही हूँ एक ही
झंकार जीवन में, प्रलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख दुःख कर रहे
मेरा नया श्रृंगार सा क्या?
झूम गर्वित स्वर्ग देता-
नत धरा को प्यार सा क्या?

आज पुलकित सृष्टि क्या
करने चली अभिसार लय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! कविता | महादेवी वर्मा

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

तारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!

द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल;
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!

मेरे निस्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर।
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
अपनी मृदु पलकों से चंचल
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

सीमा ही लघुता का बन्धन
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
अमिट चित्र अंकित करता चल,
सरल-सरल मेरे दीपक जल!

तू जल-जल जितना होता क्षय;
यह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

मैं नीर भरी दुख की बदली! कविता | महादेवी वर्मा Mahadevi Verma Poems Women

मैं नीर भरी दुख की बदली!

स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल
छाया में मलय-बयार पली।

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में
सुख की सिहरन हो अन्त खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!

मैं नीर भरी दुख की बदली! _महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
मैं नीर भरी दुख की बदली! _महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

बताता जा रे अभिमानी! कविता | महादेवी वर्मा

बताता जा रे अभिमानी!

कण-कण उर्वर करते लोचन
स्पन्दन भर देता सूनापन
जग का धन मेरा दुख निर्धन
तेरे वैभव की भिक्षुक या
कहलाऊँ रानी!
बताता जा रे अभिमानी!

दीपक-सा जलता अन्तस्तल
संचित कर आँसू के बादल
लिपटी है इससे प्रलयानिल,
क्या यह दीप जलेगा तुझसे
भर हिम का पानी?
बताता जा रे अभिमानी!

चाहा था तुझमें मिटना भर
दे डाला बनना मिट-मिटकर
यह अभिशाप दिया है या वर;
पहली मिलन कथा हूँ या मैं
चिर-विरह कहानी!
बताता जा रे अभिमानी!

बताता जा रे अभिमानी!_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
बताता जा रे अभिमानी!_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

ओ पागल संसार! | नीरजा कविता | महादेवी वर्मा

ओ पागल संसार!
माँग न तू हे शीतल तममय!
जलने का उपहार!

करता दीपशिखा का चुम्बन,
पल में ज्वाला का उन्मीलन;
छूते ही करना होगा
जल मिटने का व्यापार!
ओ पागल संसार!

दीपक जल देता प्रकाश भर,
दीपक को छू जल जाता घर,
जलने दे एकाकी मत आ
हो जावेगा क्षार!
ओ पागल संसार!

जलना ही प्रकाश उसमें सुख
बुझना ही तम है तम में दुख;
तुझमें चिर दुख, मुझमें चिर सुख
कैसे होगा प्यार!
ओ पागल संसार!

शलभ अन्य की ज्वाला से मिल,
झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल!
कब कर पाया वह लघु तन से
नव आलोक-प्रसार!
ओ पागल संसार!

अपना जीवन-दीप मृदुलतर,
वर्ती कर निज स्नेह-सिक्त उर;
फिर जो जल पावे हँस-हँस कर
हो आभा साकार!
ओ पागल संसार!

दीपशिखा | प्राण हँस कर ले चला जब कविता | महादेवी वर्मा

प्राण हँस कर ले चला जब
चिर व्यथा का भार

उभर आये सिन्धु उर में
वीचियों के लेख,
गिरि कपोलों पर न सूखी
आँसुओं की रेख
धूलि का नभ से न रुक पाया कसक-व्यापार

शान्त दीपों में जगी नभ
की समाधि अनन्त,
बन गये प्रहरी, पहन
आलोक-तिमिर, दिगन्त!
किरण तारों पर हुए हिम-बिन्दु बन्दनवार।

स्वर्ण-शर से साध के
घन ने लिया उर बेध,
स्वप्न-विहगों को हुआ
यह क्षितिज मूक निषेध
क्षण चले करने क्षणों का पुलक से श्रृंगार!

शून्य के निश्वास ने दी
तूलिका सी फर,
ज्वार शत शत रंग के
फैले धरा को घेर!
वात अणु अणु में समा रचने लगी विस्तार!

अब न लौटाने कहो
अभिशाप की वह पीर,
बन चुकी स्पन्दन ह्रदय में
वह नयन में नीर!
अमरता उसमें मनाती है मरण-त्योहार!

छाँह में उसकी गये आ
शूल फूल समीप,
ज्वाल का मोती सँभाले
मोम की यह सीप
सृजन के शत दीप थामे प्रलय दीपाधार!

यह सपने सुकुमार कविता |महादेवी वर्मा

यह सपने सुकुमार तुम्हारी स्मित से उजले!
कर मेरे सजल दृगों की मधुर कहानी,
इनका हर कण हुआ अमर करुणा वरदानी,
उडे़ तृणों की बात तारकों से कहने यह
चुन प्रभात के गीत, साँझ के रंग सलज ले!


लिये छाँह के साथ अश्रु का कुहक सलोना,
चले बसाने महाशून्य का कोना कोना,
इनकी गति में आज मरण बेसुध बन्दी है,
कौन क्षितिज का पाश इन्हें जो बाँध सहज ले।


पंथ माँगना इन्हें पाथेय न लेना,
उन्नत मूक असीम, मुखर सीमित तल देना,
बादल-सा उठ इन्हें उतरना है, जल-कण-सा,
नभ विद्युत् के बाण, सजा शूलों को रज ले!


जाते अक्षरहीन व्यथा की लेकर पाती,
लौटानी है इन्हें स्वर्ग से भू की थाती,
यह संचारी दीप, ओट इनको झंझा दे,
आगे बढ़, ले प्रलय, भेंट तम आज गरज ले!


छायापथ में अंक बिखर जावें इनके जब,
फूलों में खिल रूप निखर आवें इनके जब,
वर दो तब यह बाँध सकें सीमा से तुमको,
मिलन-विरह के निमिष-गुँथी साँसों की स्रज ले!

यह सपने सुकुमार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems
यह सपने सुकुमार_महादेवी वर्मा कविताए_Mahadevi Verma Poems

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