Top 10+ Birds Poems in Hindi | पक्षियों पर कविताएँ | पंछी पर कविता

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Last Updated on August 8, 2023

If you are looking for the Best Hindi Poems on Birds then here we have the best collection of पक्षियों पर कविताएँ.

We also wrote Peacock Poems and here in this article, we are combining all the poems related to Birds in One place. So please share these पंछी पर कविता | Hindi Poem On Birds.

पंछी पर कविता | Hindi Poem On Birds

Here we have the best collection of Top 9 पंछी पर कविता | Hindi Poem On Birds.

1.तदबीर | मैं पंछी आज़ाद | Panchiyon Par Kavita

मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे।
इस दुनिया के बाग़ में मेरा आना-जाना रे।।

जीवन के प्रभात में आऊँ, साँझ भये तो मैं उड़ जाऊँ।
बंधन में जो मुझ को बांधे, वो दीवाना रे।। मैं पंछी…

दिल में किसी की याद जब आए, आँखों में मस्ती लहराए।
जनम-जनम का मेरा किसी से प्यार पुराना रे।। मैं पंछी…

2.यह मन पंछी सा | पृथ्वी पाल रैणा | Birds Rhymes in Hindi

दिशाहीन यह मन पंछी सा
आस की टहनी पर जब बैठा;
जग मकड़ी के जैसे आकर
पंखों पर इक जाल बुन गया ।
सूरज की सतरंगी किरणें
ख़्वाव दिखा कर चली गईं;
सांझ ढली, सूरज डूबा
मैं जग के हाथों हार गया

3.प्यार पंछी,सोच पिंजरा | बशीर बद्र | Hindi Poem on Panchi

प्यार पंछी सोच पिंजरा दोनों अपने साथ हैं,
एक सच्चा, एक झूठा, दोनों अपने साथ हैं,

आसमाँ के साथ हमको ये जमीं भी चाहिए,
भोर बिटिया, साँझ माता दोनों अपने साथ हैं।

आग की दस्तार बाँधी, फूल की बारिश हुई,
धूप पर्वत, शाम झरना, दोनों अपने साथ हैं।

ये बदन की दुनियादारी और मेरा दरवेश दिल,
झूठ माटी, साँच सोना, दोनों अपने साथ हैं।

वो जवानी चार दिन की चाँदनी थी अब कहाँ,
आज बचपन और बुढ़ापा दोनों अपने साथ हैं।

मेरा और सूरज का रिश्ता बाप बेटे का सफ़र,
चंदा मामा, गंगा मैया, दोनों अपने साथ हैं।

जो मिला वो खो गया, जो खो गया वो मिल गया,
आने वाला, जाने वाला, दोनों अपने साथ हैं।

4.पंछी और पानी | कुमार विकल | Poem on Birds in Hindi for class 8th

कौन देस से आए ये पंछी

कौन देस को जाएंगे

क्या-क्या सुख लाए ये पंछी

क्या-क्या दुख दे जाएंगे

पंछी की उड़ान औ’ पानी

की धारा को कोई सहज समझ नहीं पाता

पंछी कैसे आते हैं

पानी कैसे बहता है

अगर कोई समझता है भी

मुझको नहीं बतलाता है ।

5.सुबह के पंछी | टोमास ट्रान्सटोमर | Pashu Pakshi Prem Kavita in Hindi

मैं जगा देता हूँ कार को
जिसकी विंडशील्ड पर
एक परत जमा हो गई है पराग की.
चढ़ा लेता हूँ अपना धूप का चश्मा
और गाढ़ा हो जाता है पंछियों का गीत.

ठीक उसी समय रेलवे स्टेशन पर
एक दूसरा शख्स खरीदता है अखबार
एक बड़ी सी माल गाड़ी के पास
जो पूरी लाल हो गई है जंग से
और झिलमिलाती हुई खड़ी है धूप में.

कहीं कोई खाली जगह नहीं है यहाँ.

सीधा बसंत की गर्माहट से होता हुआ एक सर्द गलियारा
कोई दौड़ते हुए आता है वहां
और बताता है कि कैसे ऊपर मुख्यालय में
उन्होंने अपमान किया है उसका.

भूदृश्य के पिछले दरवाजे से
उड़ते हुए आती है
श्वेत-श्याम चिड़िया मुटरी.
और इधर-उधर फुदकती रहती है श्यामा चिड़िया
हर चीज हो जाती है जैसे कोयले से बना चित्र
सिवाय तार पर सूखते सफ़ेद कपड़ों के
संगीतकार पलेसत्रिना के समूहगान की तरह.

कहीं कोई खाली जगह नहीं है यहाँ.

अद्भुत है महसूस करना अपनी कविता को फैलते हुए
जबकि सिकुड़ रहा होता हूँ खुद मैं.
वह फैलती जाती है और जगह ले लेती है मेरी
कर देती है किनारे,
घोंसले के बाहर फेंक देती है मुझे
और तैयार हो जाती है कविता.

(अनुवाद : मनोज पटेल)

6.पंछी का यही आस विश्वास | राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

पंछी का यही आस विश्वास
पंख पसारे उड़ता जाये
निर्मल नीरव आकाश
पंछी का यही आस विश्वास

पिंजड़े की कारा की काया में
उजियारी अँधियारी छाया में
चंदा के दर्पण की माया में
अजगर काल का उगल रहा है
कालकूट उच्छवास
पंछी का यही आस विश्वास

भंँवराती नदियाँ गहरी
बहता निर्मल पानी
घाट बदलते हैं लेकिन
तट पूलों की मनमानी
टूट रहा तन, भीग रहा क्षण,
मन करता नादानी,
निदियारी आँखों में होता
चिर विराम का आभास
पंछी का यही आस विश्वास

किया नीड़ निर्माण,
हुआ उसका फिर अवसान
काली रात डोंगर की बैरी,
बीत गया दिनमान
डाल पात पर व्यर्थ की भटकन
न हुई निज से पहचान
सूखे पत्ते झर-झर पड़ते,
करते फागुन का उपहास
पंछी का यही आस विश्वास
पंख पसारे उड़ता जाये
निर्मल नीरव आकाश

7.पंछी बोला | रामावतार यादव ‘शक्र’

-1-
संध्या की उदास बेला, सूखे तरुपर पंछी बोला!

आँखें खोलीं आज प्रथम, जग का वैभव लख भूला मन!
सोचा उसने-”भर दूँ अपने मादक स्वर से निखिल गगन!“
दिन भर भटक-भटक कर नभ में मिली उसे जब शान्ति नहीं,
बैठ गया तरु पर सुस्ताने, बैठ गया होकर उन्मन!

देखा अपनी ही ज्वाला में
झुलस गई तरु की काया;
मिला न उसे स्नेह जीवन में,
मिली न कहीं तनिक छाया।

सोच रहा-”सुख जब न विश्व में, व्यर्थ मिला ऐसा चोला।“
संध्या की उदास बेला, सूखे तरु पर पंछी बोला।

-2-

देखा था कलियों को प्रातः हँसते ही उपवन में आज;
कैसा मादक स्वर भरता था मधुपों का तब जुड़ा समाज।
देखा मलय पवन को भरते प्रतिपल सौरभ से झोली,
अवनि हरित थी, गगनांगन में धमित मोद था रहा विराज।

प्रथम-प्रथम देखा था जैसा,
भूला था जिसको लख कर;
रहा न वही रूप जगती का,
देखा दिनभर अनुभव कर।

सोच रहा वह-”हँसी-खुशी में किसने विष लाकर घोला!“
संध्या की उदास बेला, सूखे तरु पर पंछी बोला!

-3-

नभ में एक तारिका जलती, धूल-धूसरित गगन महान!
विहग-यूथ नीड़ों को जाते लेकर कोई व्यथा अजान!
जीवन की ज्वाला की यादें रह-रह विकल बनाती हैं,
मानस में हलचल फैली है, उठता है भीषण तूफान।

कहता है समीर कुछ जग से,
कहता कुछ नभ सीमा-हीन!
संध्या की उदास छाया में
भटक रहा कोई पथ-हीन।

सोच रहा डाली पर पंछी, एक शुष्क पत्ता डोला।
संध्या की उदास बेला, सूखे तरु पर पंछी बोला।

8.मैं भी अगर पंछी होता | जनार्दन कालीचरण

मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता
तो बस्ती-बस्ती में फिरता रहता
सुन्दर नग-नद-नालों का यार होता
मस्ती में अपनी झूमता रहता । मैं भी अगर …
आदमी का गुण मुझ में न होता
ईर्ष्या की आग में न जलाता होता
स्वार्थ के युद्ध में न मरता-मारता
बम्ब-मिसाइल की वर्षा न करता । मैं भी अगर…
आंखों में दौलत का काजल न पुतता
शान के लिए पराया माल न हड़पता
हर मानव मेरा हित-बंधु होता
रंग-रूप पर अपना गर्व करता । मैं भी अगर…
तब सारा जग मेरा अपना होता
पासपोर्ट-वीज़ा कोई न खोजता
स्वच्छन्द वन-वन में घूमता होता
विश्व –भर मेरा अपना राज्य होता । मैं भी अगर …
प्यार के गीत जन-जन को सुनाता
आवाज़ से अपनी सब को लुभाता
मानवता की वेदी पर सिर झुकाता
सागर की उर्मिल का झूला झूलता ।
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता ।।

9.पंछी चला गया | प्रदीप शुक्ल

मन उदास है
पिंजरा खाली
पंछी चला गया

लोग यहाँ
इस दुनिया में
कुछ ऐसे आते हैं
जिनके जाने पर फूलों के
दिल कुम्हलाते हैं
लगता है
बस पंख लगा कर
अब हौंसला गया
सपने पूरे
तब होंगे
जब सपने आयेंगे
बंद करोगे आँखें तब वो
शोर मचायेंगे
बुझी जा रही
आँखों में
वो सपनें खिला गया

ठान लिया
जो मन में
उसको पूरा ही करना
असफलतायें आयेंगी
फिरउनसे क्या डरना
यही सफलता
की कुंजी
वो हमको दिला गया

हलचल
रहती थी
जब तक था रौनक थी घर में
रहती थी कुरआन की आयत
वीणा के स्वर में
हिन्दू मुस्लिम
सिक्ख ईसाई
सब को रुला गया।

10.Panchiyon Par Kavita

जब-जब मुझे लगता है
कि घट रही है आकाश की ऊँचाई
और अब कुछ ही पलों में मुझे पीसते हुए
चक्की के दो पाटों में तबदील हो जाएंगे धरती-आसमान
तब-तब बेहद सुकून देते हैं पंछी

आकाश में दूर-दूर तक उड़ते ढेर सारे पंछी
बादलों को चोंच मारते
अपनी कोमल लेकिन धारदार पाँखों से
हवा में दरारें पैदा करते ढेर सारे पंछी
ढेर सारे पंछी

धरती और आकाश के बीच
चक्कर मारते हुए
हमें एहसास दिला जाते हैं
आसमान के अनंत विस्तार
और अकूत ऊँचाई का!

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