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Amrita Pritam | अमृता प्रीतम
Amrita Pritam also is known as Amrit Kaur was an Indian Novelist, poet, essayist born on 31 August 1919
in Gujranwala, Punjab, British India (now Pakistan).
She mainly wrote about the Partition of India, Women, Dream. Her notable works are Pinjar (novel)
Ajj aakhaan Waris Shah nu (poem), and Suneray (poem).
She was survived by her partner Imroz, daughter Kandala, son Navraj Kwatra, daughter-in-law Alka, and her grandchildren, Taurus, Noor, Aman and Shilpi.
She
Novels
- Pinjar
- Doctor Dev
- Kore Kagaz, Unchas Din
- Dharti, Sagar aur Seepian
- Rang ka Patta
- Dilli ki Galiyan
- Terahwan Suraj
- Yaatri
- Jilavatan (1968)
- Hardatt Ka Zindaginama
Autobiography
- Black Rose (1968)
- Rasidi Ticket (1976)
- Shadows of Words (2004)
Short stories
- Kahaniyan jo Kahaniyan Nahi
- Kahaniyon ke Angan mein
- Stench of Kerosene
Poetry anthologies
- Amrit Lehran (Immortal Waves)(1936)
- Jiunda Jiwan (The Exuberant Life) (1939)
- Trel Dhote Phul (1942)
- O Gitan Valia (1942)
- Badlam De Laali (1943)
- Sanjh de laali (1943)
- Lok Peera (The People’s Anguish) (1944)
- Pathar Geetey (The Pebbles) (1946)
- Punjab Di Aawaaz (1952)
- Sunehade (Messages) (1955) – Sahitya Akademi Award
- Ashoka Cheti (1957)
- Kasturi (1957)
- Nagmani (1964)
- Ik Si Anita (1964)
- Chak Nambar Chatti (1964)
- Uninja Din (49 Days) (1979)
- Kagaz Te Kanvas (1981)- Bhartiya Jnanpith
- Chuni Huyee Kavitayen
- Ek Baat
Literary journal
- Nagmani, poetry monthly
Best Amrita Pritam Poems | अमृता प्रीतम कविताएँ
- दावत | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poetry
- रोजी | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poems in Hindi on Love
- दाग़ | अमृता प्रीतम
- मेरा पता | अमृता प्रीतम
- मुकाम | अमृता प्रीतम
- कुफ़्र | अमृता प्रीतम
- राजनीति | अमृता प्रीतम
- चुप की साज़िश | अमृता प्रीतम
- आदि स्मृति | अमृता प्रीतम
- एक सोच | अमृता प्रीतम
- आत्ममिलन | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Shayari
- मैं तुझे फिर मिलूँगी | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poems in Punjabi
- जब मैं तेरा गीत लिखने लगी | अमृता प्रीतम
1.दावत | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poetry
रात-कुड़ी ने दावत दी
सितारों के चावल फटक कर
यह देग किसने चढ़ा दीचाँद की सुराही कौन लाया
चाँदनी की शराब पीकर
आकाश की आँखें गहरा गयींधरती का दिल धड़क रहा है
सुना है आज टहनियों के घर
फूल मेहमान हुए हैंआगे क्या लिखा है
आज इन तक़दीरों से
कौन पूछने जायेगा…उम्र के काग़ज़ पर —
तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,
हिसाब कौन चुकायेगा !क़िस्मत ने एक नग़मा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नग़मा गायेगाकल्प-वृक्ष की छाँव में बैठकर
कामधेनु के छलके दूध से
किसने आज तक दोहनी भरी !हवा की आहें कौन सुने,
चलूँ, आज मुझे
तक़दीर बुलाने आई है…
2.रोजी | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poems in Hindi on Love
नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता हैसपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता हैतेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उलटा रखता हैबची आँच पर हाथ सेकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता हैजो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है
न कोई टुकड़ा कल के लिए है…
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3.दाग़ | अमृता प्रीतम
मौहब्बत की कच्ची दीवार
लिपी हुई, पुती हुई
फिर भी इसके पहलू से
रात एक टुकड़ा टूट गिराबिल्कुल जैसे एक सूराख़ हो गया
दीवार पर दाग़ पड़ गया…यह दाग़ आज रूँ रूँ करता,
या दाग़ आज होंट बिसूरे
यह दाग़ आज ज़िद करता है…
यह दाग़ कोई बात न मानेटुकुर टुकुर मुझको देखे,
अपनी माँ का मुँह पहचाने
टुकुर टुकुर तुझको देखे,
अपने बाप की पीठ पहचानेटुकुर टुकुर दुनिया को देखे,
सोने के लिए पालना मांगे,
दुनिया के कानूनों से
खेलने को झुनझुना मांगेमाँ! कुछ तो मुँह से बोल
इस दाग़ को लोरी सुनाऊँ
बाप! कुछ तो कह,
इस दाग़ को गोद में ले लूँदिल के आँगन में रात हो गयी,
इस दाग़ को कैसे सुलाऊँ!
दिल की छत पर सूरज उग आया
इस दाग़ को कहाँ छुपाऊँ!
4.मेरा पता | अमृता प्रीतम
आज मैंने
अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
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5.मुकाम | अमृता प्रीतम
क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया
मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया हैदेख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ
मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल देजिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयीउठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी…
6.कुफ़्र | अमृता प्रीतम
आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात कीसपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी लीआज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी लीयह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे
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7.राजनीति | अमृता प्रीतम
सुना है राजनीति एक क्लासिक फिल्म है
हीरो: बहुमुखी प्रतिभा का मालिक
रोज अपना नाम बदलता है
हीरोइन: हकूमत की कुर्सी वही रहती है
ऐक्स्ट्रा: लोकसभा और राजसभा के मैम्बर
फाइनेंसर: दिहाड़ी के मज़दूर,
कामगर और खेतिहर
(फाइनांस करते नहीं,
करवाये जाते हैं)
संसद: इनडोर शूटिंग का स्थान
अख़बार: आउटडोर शूटिंग के साधन
यह फिल्म मैंने देखी नहीं
सिर्फ़ सुनी है
क्योंकि सैन्सर का कहना है —
‘नॉट फॉर अडल्स।’
8.चुप की साज़िश | अमृता प्रीतम
रात ऊँघ रही है…
किसी ने इन्सान की
छाती में सेंध लगाई है
हर चोरी से भयानक
यह सपनों की चोरी है।चोरों के निशान —
हर देश के हर शहर की
हर सड़क पर बैठे हैं
पर कोई आँख देखती नहीं,
न चौंकती है।
सिर्फ़ एक कुत्ते की तरह
एक ज़ंजीर से बँधी
किसी वक़्त किसी की
कोई नज़्म भौंकती है।
9.आदि स्मृति | अमृता प्रीतम
काया की हक़ीक़त से लेकर —
काया की आबरू तक मैं थी,
काया के हुस्न से लेकर —
काया के इश्क़ तक तू था।यह मैं अक्षर का इल्म था
जिसने मैं को इख़लाक दिया।
यह तू अक्षर का जश्न था
जिसने ‘वह’ को पहचान लिया,
भय-मुक्त मैं की हस्ती
और भय-मुक्त तू की, ‘वह’ कीमनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है…
10.एक सोच | अमृता प्रीतम
भारत की गलियों में भटकती हवा
चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती
उधार लिए अन्न का
एक ग्रास तोड़ती
और घुटनों पे हाथ रखके
फिर उठती है…चीन के पीले
और ज़र्द होंटों के छाले
आज बिलखकर
एक आवाज़ देते हैं
वह जाती और
हर गले में एक सूखती
और चीख मारकर
वह वीयतनाम में गिरती है…श्मशान-घरों में से
एक गन्ध-सी आती
और सागर पार बैठे –
श्मशान-घरों के वारिस
बारूद की इस गन्ध को
शराब की गन्ध में भिगोते हैं।बिलकुल उस तरह, जिस तरह –
कि श्मशान-घरों के दूसरे वारिस
भूख की एक गन्ध को
तक़दीर की गन्ध में भिगोते हैं
और लोगों के दुःखों की गन्ध को –
तक़रीर की गन्ध में भिगोते हैं।और इज़राइल की नयी-सी माटी
या पुरानी रेत अरब की
जो खून में है भीगती
और जिसकी गन्ध –
ख़ामख़ाह शहादत के जाम में है डूबती…छाती की गलियों में भटकती हवा
यह सभी गन्धें सूंघती और सोचती –
कि धरती के आंगन से
सूतक की महक कब आएगी?
कोई इड़ा – किसी माथे की नाड़ी
– कब गर्भवती होगी?
गुलाबी माँस का सपना –
आज सदियों के ज्ञान से
वीर्य की बूंद मांगता…
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11.आत्ममिलन | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Shayari
मेरी सेज हाज़िर है
पर जूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है……
12.मैं तुझे फिर मिलूँगी | अमृता प्रीतम | Amrita Pritam Poems in Punjabi
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहींया सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगीया फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगीमैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता हैपर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहींमैं तुझे फिर मिलूँगी!!
13.जब मैं तेरा गीत लिखने लगी | अमृता प्रीतम
मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दींदिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई……जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के ऊपर उभर आईं
केसर की लकीरेंसूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गई,
हमारी दोनों की तकदीरें
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