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Best Faiz Ahmed Faiz Poems | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविताएं
- सितम की रस्में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- तेरी सूरत | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- यूँ बहार आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- रंग है दिल का मेरे | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- मुझ से पहली सी | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- नज़्रे सौदा | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- बात बस से निकल चली है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- तुम न आये थे
- तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- ये धूप किनारा शाम ढले | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
1.सितम की रस्में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन, न थी तेरी अंजुमन से पहले
सज़ा खता-ए-नज़र से पहले, इताब ज़ुर्मे-सुखन से पहलेजो चल सको तो चलो के राहे-वफा बहुत मुख्तसर हुई है
मुक़ाम है अब कोई न मंजिल, फराज़े-दारो-रसन से पहलेनहीं रही अब जुनूं की ज़ंजीर पर वह पहली इजारदारी
गिरफ्त करते हैं करनेवाले खिरद पे दीवानपन से पहलेकरे कोई तेग़ का नज़ारा, अब उनको यह भी नहीं गवारा
ब-ज़िद है क़ातिल कि जाने-बिस्मिल फिगार हो जिस्मो-तन से पहलेगुरूरे-सर्वो-समन से कह दो के फिर वही ताज़दार होंगे
जो खारो-खस वाली-ए-चमन थे, उरूजे-सर्वो-समन से पहलेइधर तक़ाज़े हैं मसहलत के, उधर तक़ाज़ा-ए-दर्द-ए-दिल है
ज़बां सम्हाले कि दिल सम्हाले, असीर ज़िक्रे-वतन से पहले
2.तेरी सूरत | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तेरी सूरत जो दिलनशीं की है
आशना शक्ल हर हसीं की हैहुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हमने आतशीं की हैसुबहे-गुल हो की शामे-मैख़ाना
मदह उस रू-ए-नाज़नीं की हैशैख़ से बे-हिरास मिलते हैं
हमने तौबा अभी नहीं की हैज़िक्रे-दोज़ख़, बयाने-हूरो-कुसूर
बात गोया यहीं कहीं की हैअश्क़ तो कुछ भी रंग ला न सके
ख़ूं से तर आज आस्तीं की हैकैसे मानें हरम के सहल-पसन्द
रस्म जो आशिक़ों के दीं की हैफ़ैज़ औजे-ख़याल से हमने
आसमां सिन्ध की ज़मीं की है
3.यूँ बहार आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
कूचा-ए-यार से बे-नैलो-मराम आता हैहर कोई शहर में फिरता है सलामत-दामन
रिंद मयख़ाने से शाइस्ता-ख़राम आता हैहवसे-मुतरिबो-साक़ी मे परीशां अकसर
अब्र आता है कभी माहे-तमाम आता हैशौक़वालों की हज़ीं महफिले-शब में अब भी
आमदे सुबह की सूरत तेरा नाम आता हैअब भी एलाने-सहर करता हुआ मस्त कोई
दाग़े-दिल कर के फ़रोज़ाँ सरे-शाम आता है
- Atal Bihari Vajpayee Poems | अटल बिहारी वाजपेयी कविताएँ
- Suryakant Tripathi “Nirala” Poems In Hindi|सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला कविताये
4.रंग है दिल का मेरे | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम न आये थे तो हर चीज़ वहीं थी कि जो है
आसमां हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मयऔर अब शीशा-ए-मय, राहगुज़र, रंग-ए-फलक
रंग है दिल का मेरे खूने-जिगर होने तक
चम्पई रंग कभी, राहते-दीदार का रंग
सुर्मई रंग की है साअते-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खसो-खार का रंग
सुर्ख फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू रंग, शबे-तार का रंग
आसमां, राहगुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीग हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना हैअब जो आये हो तो ठहरो कि कोई रंग, कोई रुत, कोई शै
एक जगह पर ठहरे
फिर से इक बार हर एक चीज़ वहीं हो कि जो है
आसमां हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-म
5.मुझ से पहली सी | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग
मैने समझा था कि तू है तो दरख़्शां है हयात
तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया मे रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये
यूँ न था, मैने फ़क़त चाहा था यूँ हो जायेऔर भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवाअनगिनत सदियों से तरीक़ बहीमाना तिलिस्म
रेशमो-अतलसो-किमख़्वाब में बुनवाये हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ए-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए, ख़ून मे नहलाये हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजेऔर भी दुख हैं ज़माने मे मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की रहत के सिवामुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग
- देशभक्ति पर कविताएँ Patriotic Poems in Hindi | Desh Bhakti Kavita Sangrah
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6.नज़्रे सौदा | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़िक्रे-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूं या न करूं
ज़िक्रे-मुर्गाने-गिरफ़्तार करूं या न करूंक़िस्सा-ए-साज़िशे-अग़यार कहूं या न कहूं
शिकवा-ए-यारे-तरहदार करूं या न करूंजाने क्या वज़ा है अब रस्मे-वफ़ा की ऐ दिल
वज़ा-ए-दैरीना पे इसरार करूं या न करूंजाने किस रंग में तफ़सीर करें अहले-हवस
मदहे-ज़ुल्फो-लबो-रुख़सार करूं या न करूंयूं बहार आई है इमसाल कि गुलशन में सबा
पूछती है गुज़र इस बार करूं या न करूंगोया इस सोच में है दिल में लहू भर के गुलाब
दामनो-जेब को गुलनार करूं या न करूंहै फक़त मुर्ग़े-ग़ज़लख़्वां कि जिसे फ़िक्र नहीं
मोतदिल गर्मी-ए-गुफ़्तार करूं या न क
7.बात बस से निकल चली है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली हैजब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ’त बहल चली हैअश्क़ ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली हैया यूँ ही बुझ रही हैं शमएँ
या शबे-हिज़्र टल चली हैलाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा एक पल चली हैजाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है
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8.तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी के जो है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी के जो है
आसमाँ हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय, राह-गुज़र, रंग-ए-फ़लक
रंग है दिल का मेरे “खून-ए-जिगर होने तक”
चम्पई रंग कभी, राहत-ए-दीदार का रंग
सुरमई रंग के है सा’अत-ए-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खस-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू-रंग, शब-ए-तार का रंगआसमाँ, राह-गुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आइना है
अब जो आये हो तो ठहरो के कोई रंग, कोई रुत, कोई शय
एक जगह पर ठहरेफिर से एक बार हर एक चीज़ वही हो जो है
आसमाँ हद-ए-नज़र, राह-गुज़र राह-गुज़र, शीशा-
9.तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से हैकिसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म
गिला है जो भी किसी से तेरी सबब से हैहुआ है जब से दिल-ए-नासबूर बेक़ाबू
कलाम तुझसे नज़र को बड़ी अदब से हैअगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रन्ग-ए-लब से हैकहाँ गये शब-ए-फ़ुरक़त के जागनेवाले
सितारा-ए-सहर हम-कलाम कब से है
10.ये धूप किनारा शाम ढले | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये धूप किनारा शाम ढले,
मिलते हैं दोनो वक़्त जहाँ,
जो रात ना दिन, जो आज ना कल,
पल भर को अमर, पल भर में धुआंइस धूप किनारे पल दो पल
होठों कि लपक बाहों कि खनक
ये मेल हमारा झूठ ना सच क्यों रार करें,
क्यों दोष धरें किस कारण झूठी बात करें
जब तेरी समंदर आंखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर दर वाले
और राही अपनी राह लेगा
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